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Dainik Vishwamitra

रविवार १२ मई २०२४

कृषि कानून: समिति ने सौंपी रिपोर्ट, किसानों का आंदोलन तेज करने का एलान



 
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय की ओर से नये कृषि कानूनों की समीक्षा के लिए गठित समिति ने अपनी रिपोर्ट न्यायालय को सौंप दी है जबकि कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन कर रहे किसानों ने अप्रैल से अपने आंदोलन को और तेज करने की घोषणा की है।
शीर्ष अदालत समिति की रिपोर्ट पर पांच अप्रैल को सुनवाई करेगा। तीन सदस्यीय समिति के एक सदस्य अनिल घनावत ने शीर्ष अदालत में रिपोर्ट सौंपे जाने की बुधवार को पुष्टि की। उन्होंने कहा कि समिति ने 19 मार्च को ही अपनी रिपोर्ट न्यायालय को सौंप दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने नए कृषि कानूनों को लेकर तीन सदस्यीय समिति गठित की थी। समिति को तीन नए कृषि कानूनों पर रिपोर्ट सौंपने के लिए 20 मार्च तक का समय दिया गया था। समिति ने हालांकि, अभी यह नहीं बताया कि इसमें क्या सिफारिशें की गई हैं।
केंद्र सरकार के रवैए से नाराज किसानों ने मई माह के पहले पखवाड़े में संसद भवन तक पैदल मार्च करने का एलान किया है। इसकी अगुवाई महिलाएं करेंगी और सभी बार्डर से एक साथ किसान पैदल दिल्ली के लिए निकलेंगे।
कुंडली बॉर्डर पर संयुक्त मोर्चा की बैठक में यह निर्णय लिया गया हैं। इनके बारे में आज किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी, एडवोकेट प्रेम सिहं भंगु, बूटा सिहं बुर्जगिल, सतनाम सिंह अजनाला रविंदर कौर, सरदार संतोख सिंह, जोगेंद्र नैन और प्रदीप धनखड़ ने जानकारी दी है।
किसान नेताओं ने कहा कि गणतंत्र दिवस पर जिस तरह से पुलिस ने किसानों को गुमराह किया था, ऐसा इस बार नहीं होगा। इसके चलते ही पैदल मार्च का निर्णय लिया गया है, ताकि सभी क्रमबद्ध तरीके से चलें। एक सवाल के जवाब में किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा कि सरकार की नीयत में खोट है। प्रधानामंत्री कह रहे हैं कि एमएसपी था और रहेगा जबकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से जब किसानों की बात हुई, तो उन्होंने साफ मना कर दिया था कि सरकार सारी फसल नहीं खरीद सकती है।
श्री चढूनी ने कहा कि अगर सरकार की नीयत साफ है, तो प्रधानमंत्री संसद के पटल पर कह दें कि सभी 23 फसल एमएसपी पर खरीदी जाएंगी। अगर कोई प्राइवेट आदमी कम पर खरीदता है, तो बाकी के पैसे का भुगतान किसान को सरकार करेगी, किसान मान जाएंगे कि सरकार हितैषी है। उन्होंने दोहराया कि तीन कानूनों में किसी तरह की कमी-पेशी पर सहमति का सवाल ही नहीं है। सरकार बिना राज्यों की मंजूरी के यह कानून बना ही नहीं सकती है, तो कानून क्यों बनाए गए। यह राज्य सरकारों के भरोसे क्यों नहीं छोड़ा गया। इसलिए यह तीनों कानून पूरी तरह रद्द कराकर ही किसान घर के लिए लौटेंगे।


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