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Dainik Vishwamitra

शनिवार ११ मई २०२४

बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे पंकज मलिक


वर्ष 1936 में प्रदर्शित फिल्म. देवदास. बतौर संगीत निर्देशक पंकज मलिक के सिने कैरियर की महत्वपूर्ण फिल्म साबित हुयी। शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास पर आधारित इस फिल्म में कुंदन लाल सहगल ने मुख्य भूमिका निभायी थी। पी.सी.बरूआ के निर्देशन में बनी इस फिल्म में भी पंकज मलिक को एक बार फिर से आर.सी.बोराल के साथ काम करने का अवसर मिला। फिल्म और संगीत की सफलता के साथ हीं पंकज मलिक बतौर संगीतकार फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित हो गये। सहगल उनके प्रिय अभिनेता और पार्श्वगायक हो गये। बाद में पंकज मलिक ने कई फिल्मों में सहगल के गाये गीतों के लिये संगीत निर्देशन किया।
पंकज मलिक ने संगीत निर्देशन और पार्श्वगायन के अलावा कुछ फिल्मों में अभिनय भी किया। इनमें मुक्ति. अधिकार. रंजन आंधी. अलोछाया. डॉक्टर और नर्तकी जैसी फिल्में प्रमुख है। इन सबके साथ ही पंकज मलिक ने कई किताबें भी लिखी। इनमें गीत वाल्मीकि. स्वर लिपिका. गीत मंजरी और महिषासुर मर्दनी शामिल है।पंकज मलिक ने टैगोर रचित कई कविताओं के लिये भी संगीत दिया। उनका गुरु रवीन्द्र नाथ टैगोर से जुड़ने का वाकया दिलचस्प है। एक बार उन्हें कॉलेज के किसी कार्यक्रम में टैगोर की एक कविता पर संगीत निर्देशन करना था। जब वह टैगोर से इस बारे में बातचीत करने पहुंचे तो उन्हें घंटों इंतजार करना पड़ा। बाद में टैगोर ने अपनी एक कविता .दिनेर शेषे घूमर देशे. पंकज मलिक को सुनाई और उस पर संगीत बनाने को कहा। पंकज मलिक ने तुंरत उस कविता पर संगीत बनाकर टैगोर को सुनाया जिसे सुनकार टैगोर काफी प्रभावित हुए और अपनी कविता पर कॉलेज में संगीत देने के लिये राजी हो गये।
संगीत के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान को देखते हुये पंकज मलिक वर्ष 1970 में भारत सरकार की ओर से पद्मश्री से सम्मानित किये गये। वर्ष 1972 में उन्हें फिल्म जगत के सर्वोच्च सम्मान दादा फाल्के पुरस्कार से भी पंकज मल्लिक को सम्मानित किया गया। अपने जादुई संगीत निर्देशन से श्रोताओं के बीच खास पहचान बनाने वाले इस महान संगीतकार ने 19 फरवरी 1978 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया।


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