कोलकाता : शरतचंद्र चट्टोपाध्याय महानतम उपन्यासकारों में से एक रहे हैं। उनकी कहानियां आज भी कई मामलों में प्रासंगिक हैं। ऐसी ही एक शरतचंद्र द्वारा रचित बांग्ला लघु कथा "ओभागीर सोर्गो" आज भी ग्रामीण क्षेत्रों के लिए प्रासंगिक है। इसी कहानी को आधार बनाकर निर्देशक अनिर्बान चक्रवर्ती ने अपनी आगामी बांग्ला फिल्म "ओ ओभागी" बनाई है। फिल्म की मुख्य भूमिका में राफ़िआत राशीद मिथिला हैं जो कि बांग्लादेश सिनेमा का एक चर्चित चेहरा है। फिल्म की कहानी एक ऐसी लड़की की है जिसके जन्म लेते ही उसकी माँ की मृत्यु हो जताई है। जिसके बाद उसे समाज द्वारा "अभागी" कहा जाने लगता है। पिता भी उसपर कुछ खास ध्यान नहीं देते हैं जिसके फलस्वरूप कई प्रकार की विवशताओं और अभावों में उसका बचपन बीतता है। लेकिन उस लड़की को हमेशा ही यह महसूस होता था जैसे कि उसकी शादी एक दिन यमराज से होगी जो उसे अपने सोने के रथ में बिठाकर स्वर्ग ले जायेगा और वो वहां की रानी बनेगी। लेकिन नियति उसे एक घुमक्कड़ गवैये की पत्नी बना देता है , लेकिन वो इस रिश्ते को संभल नहीं पाती है और एक बेटे के जन्म के पश्चात उसका पति उसे छोड़कर चला जाता है। बहुत ही दयनीय परस्थितियों में वो अपने बेटे के साथ जीवन बसर करने लगती है। फिर वो एक समय बहुत बीमार पड़ती है और उसे महसुसु होता है कि उसके मृत्यु का समय आ गया है और उसे सोने के रथ में यमराज के साथ स्वर्ग जाना है। वो अपने बेटे से अंतिम ईच्छा के रूप में मांग करती है कि उसका दाह-संस्कार लकड़ी की चिता पर किया जाय। लेकिन यह भी संभव नहीं हो पाता है क्यों और कैसे ? यह जानने के लिए फिल्म देखिये। स्वभूमि एंटरटेनमेंट के बैनर तले फिल्म के निर्माता प्रबीर भौमिक है। मुख्य भूमिका में रफियात रशीद मिथिला के साथ ही सहायक भूमिकाओं में सुब्रता दत्ता, सायोन घोष, देबजानी चटर्जी, ईशान मजूमदार, जिनी पांडे, कृष्णा बनर्जी ने अच्छा अभिनय किया है। वहीं मलय मंडल के छायांकन में फिल्म बहुत ही खूबसूरत दिखती है तो चुस्त संपादन से सुजॉय दत्ता रॉय ने फिल्म को बांधे रखा है। मौसमी चटर्जी के संगीत में कर्णप्रिय गानों को अपनी आवाज़ से लग्नजिता चक्रवर्ती, रूपंकर बागची, चन्द्राणी बनर्जी ने सजाया है फलस्वरूप फिल्म बहुत ही मनोरम लगती है।
फिल्म की कहानी दो ऐसे वयस्कों की है जिन्हें एक दूसरे से प्यार हो जाता है और वें शादी करना चाहते हैं। लेकिन सामाजिक ताना बुना में स्थापित नहीं होने के कारण उन्हें परिवार के सदस्यों का विरोध सहना पड़ता है,
फिल्म 26 अप्रैल को सिनेमाघरों में रिलीज़ होने जा रही है। फिल्म का निर्माण धागा प्रोडक्शन के बैनर तले हुई है जिसके निर्माता शुभंकर मित्रा हैं।
वो अपने बेटे से अंतिम ईच्छा के रूप में मांग करती है कि उसका दाह-संस्कार लकड़ी की चिता पर किया जाय। लेकिन यह भी संभव नहीं हो पाता है क्यों और कैसे ? यह जानने के लिए फिल्म देखिये।