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Dainik Vishwamitra

बुधवार ४ दिसंबर २०२४

लेख

66 वर्ष के हुये समीर


लगभग दस वर्ष तक मुंबई में संघर्ष करने के बाद वर्ष 1990 में आमिर खान-माधुरी दीक्षित अभिनीत फिल्म ..दिल ..में अपने गीत ..मुझे नींद ना आये.. की सफलता के बाद समीर गीतकार के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गये।


मुंबई, 24 फरवरी बॉलीवुड के जानेमाने गीतकार समीर आज 66 वर्ष के हो गये।

शीतला पांडेय उर्फ समीर का जन्म 24 फरवरी 1958 को बनारस में हुआ। उनके पिता अंजान फिल्म जगत के मशहूर गीतकार थे। बचपन से ही समीर का रूझान अपने पिता के पेशे की ओर था। वह भी फिल्म इंडस्ट्री में गीतकार बनना चाहते थे लेकिन उनके पिता चाहते थे कि वह अलग क्षेत्र में अपना भविष्य बनायें। समीर ने बनारस हिंदु विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की पढाई पूरी की। इसके बाद परिवार के जोर देने पर उन्होंने अपने कैरियर की शुरूआत बतौर बैंक ऑफिसर शुरू की। बैंक की नौकरी उनके स्वभाव के अनुकूल नहीं थी। कुछ दिनों के बाद उनका मन इस काम से उचट गया और उन्होंने नौकरी छोड़ दी।

अस्सी के दशक में गीतकार बनने का सपना लिये समीर ने मुंबई की ओर रूख कर लिया। लगभग तीन वर्ष तक मुंबई में रहने के बाद वह गीतकार बनने के लिये संघर्ष करने लगे। आश्वासन तो सभी देते रहे लेकिन उन्हें काम करने का अवसर कोई नहीं देता था। अथक परिश्रम करने के बाद 1983 में उन्हें बतौर ..बेखबर .. फिल्म के लिये गीत लिखने का मौका मिला। इस बीच समीर को इंसाफ कौन करेगा,जवाब हम देगें,दो कैदी,रखवाला, महासंग्राम,बीबी हो तो ऐसी,बाप नंबरी बेटा दस नंबरी जैसी कई बड़े बजट की फिल्मों में काम करने का अवसर मिला लेकिन इन फिल्मों की असफलता के कारण वह फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में नाकामयाब रहे।

लगभग दस वर्ष तक मुंबई में संघर्ष करने के बाद वर्ष 1990 में आमिर खान-माधुरी दीक्षित अभिनीत फिल्म ..दिल ..में अपने गीत ..मुझे नींद ना आये.. की सफलता के बाद समीर गीतकार के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गये।वर्ष 1990 में ही उन्हें महेश भट्ट की फिल्म ..आशिकी ..में भी गीत लिखने का अवसर मिला। फिल्म आशिकी ने ..सांसो की जरूरत है जैसे. मैं दुनिया भूला दूंगा और नजर के सामने जिगर के पास.. गीतों की सफलता के बाद समीर को कई अच्छी फिल्मों के प्रस्ताव मिलने शुरू हो गये जिनमें बेटा,बोल राधा बोल, साथी, और फूल और कांटे जैसी बड़ी बजट की फिल्में शामिल थी।इन फिल्मों की सफलता के बाद उन्होंने सफलता की नयी बुलंदियों को छुआ और एक से बढ़कर एक गीत लिखकर श्रोताओं को मंत्रमुंग्ध कर दिया।

वर्ष 1997 में अपने पिता अंजान की मौत और अपने मार्गदर्शक गुलशन कुमार की हत्या के बाद समीर को गहरा सदमा पहुंचा।उन्होंने कुछ समय तक फिल्म इंडस्ट्री से किनारा कर लिया और वापस बनारस चले गये. लेकिन उनका मन वहां भी नहीं लगा और एक बार फिर नये जोश के साथ वह मुंबई आ गये और 1999 में प्रदर्शित फिल्म ..हसीना मान जायेगी ..से अपने सिने कैरियर की दूसरी पारी की शुरूआत कर दी।समीर ने अपने सिने करियर में लगभग 500 हिंदी फिल्मों के लिये गीत लिखे। उनके फिल्मी सफर पर नजर डालने पर पता लगता है कि उन्होंने सबसे ज्यादा फिल्में संगीतकार नदीम श्रवण और आनंद मिलिंद के साथ ही की है। यूं तो समीर ने कई अभिनेताओं के लिये गीत लिखे लेकिन अभिनेता गोविन्दा पर फिल्माये उनके गीत काफी लोकप्रिय हुए।

वर्ष 1990 में प्रदर्शित फिल्म ..स्वर्ग..में अपने गीतों की कामयाबी के बाद उन्होंने गोविन्दा के लिये कई फिल्मों के गीत लिखे।इन फिल्मों में राजा बाबू,हीरो नंबर वन,हसीना मान जायेगी,साजन चले ससुराल, बडे मियां छोटे मियां,राजा जी,जोरू का गुलाम,हीरो नंबर वन,दुल्हे राजा,आंटी नंबर वन,शिकारी और भागम भाग जैसी फिल्में शामिल हैं।समीर को अब तक तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।सबसे पहले उन्हें 1990 में फिल्म आशिकी के ..नजर के सामने जिगर के पास..गाने के लिये सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया।इसके बाद 1992 में फिल्म दीवाना के गीत ..तेरी उम्मीद तेरा इंतजार करते है.. और 1993 में फिल्म हम हैं राही प्यार के के गीत ..घूंघट की आड़ से दिलबर का दीदार अधूरा लगता है..के लिये भी उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया।

समीर ने अपने करियर में लगभग छह हजार फिल्मी और गैर फिल्मी गाने लिखे है।उन्होंने हिन्दी के अलावा भोजपुरी.मराठी फिल्मों के लिये भी गीत लिखे है। समीर का नाम सबसे अधिक गीत लिखने के लिये गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड की किताब में दर्ज है।समीर आज भी उसी जोशोखरोश के साथ फिल्म जगत को सुशोभित कर रहे है।


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