कच्छ के रण-उत्सव में डेढ़ माह में एक लाख से अधिक पर्यटकों का आगमन: मोदी
नयी दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को गुजरात के कच्छ क्षेत्र के कायाकल्प के लिए वहां के परिश्रमी लोगों की सराहना करते हुए कहा कि कच्छ में चल रहे रण-उत्सव के दौरान वहां डेढ़ माह के अंदर एक लाख से अधिक पर्यटकों का आगमन हुआ है।
श्री मोदी ने कहा कि एक समय था जब कच्छ के लोग रोजी-रोटी के लिए दुनिया भर में जाया करते थे, आज दुनिया भर से लोग कच्छ की तरफ आकर्षित हो रहे हैं।
उन्होंने कच्छ के गुरुद्वारा लखपत साहिब में गुरुपर्व समारोहों के उपलक्ष्य में आयोजित एक समागम को वीडियो लिंक के माध्यम से संबोधित करते हुए कहा, “ रण-उत्सव के दौरान पिछले एक-डेढ़ महीने में एक लाख से ज्यादा टूरिस्ट, कच्छ के मनोरम दृश्यों, खुले आकाश का आनंद लेने वहां आ चुके हैं।”
उन्होंने लखपत साहिब के दर्शन करने आए श्रद्धालुओं से समय निकाल कर कच्छ के रण-उत्सव में जाने का आग्रह भी किया। कच्छ क्षेत्र में प्रगति का उल्लेख करते हुए श्री मोदी ने कहा, “ एक समय था, जब कच्छ के लोग रोजी-रोटी के लिए दुनिया भर में जाया करते थे, आज दुनिया भर से लोग कच्छ की तरफ आकर्षित हो रहे हैं।”
उन्होंने कहा कि जब इच्छाशक्ति हो, लोगों के प्रयास हों, तो कैसे धरती का कायाकल्प हो सकता है, ये मेरे कच्छ के परिश्रमी लोगों ने करके दिखाया है। उन्होंने इस बात का भी उल्लेख किया कि पिछले दिनों धौलाविरा को यूनेस्को ने विश्व विरासत स्थल घोषित किया है। इस वजह से वहां पर्यटन को और बढ़ावा मिलेगा। गुजरात सरकार ने वहां एक भव्य टेंट सिटी का भी निर्माण कर दिया है। इससे पर्यटकों की सहूलियत और बढ़ेगी। अब धोरड़ो से सीधा, रण के बीच में धौलावीरा जाने के लिए नई सड़क का निर्माण भी तेज गति से चल रहा है। आने वाले समय में भुज और पश्चिम कच्छ से खड़ीर और धौलावीरा विस्तार में आने-जाने के लिए बहुत आसानी होगी।
प्रधानमंत्री ने कहा कि इसका लाभ कच्छ के लोगों को होगा, उद्यमियों को होगा, पर्यटकों को होगा। उन्होंने कहा कि नारायण सरोवर, कोटेश्वर, माता का मढ़, हाजी पीर, धोरड़ो टेंट सिटी और धौलावीरा, ये नया मार्ग बनने से इन सभी स्थलों में पर्यटकों का आना-जाना आसान होगा।
गुरुद्वारा लखपत साहिब ऐसे स्थान पर है, जो कभी दूसरे देशों में जाने और व्यापार के लिए एक प्रमुख केंद्र होता था। गुरु नानक देव जी चौथी उदासी के दौरान कुछ दिन के लिए यहां रहे थे। समय के साथ यह शहर वीरान हो गया। समुद्र इसे छोड़ गया तथा सिंध नदी ने भी यहां से मुख मोड़ लिया। 1998 के समुद्री तूफान से इस जगह को, गुरुद्वारा लखपत साहिब को काफी नुकसान हुआ और 2001 के भूकम्प में गुरुद्वारा साहिब की 200 साल पुरानी इमारत को बड़ी क्षति पहुंचाई थी।