सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कोटा के अंदर कोटा को परमिशन
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों के भीतर उप-वर्गीकरण (कोटे के अंदर कोटा) की वैधता पर फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने राज्यों को अनुसूचित जातियों और जनजातियों में उप-वर्गीकरण की अनुमति दे दी है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात जजों की संविधान पीठ ने यह निर्णय सुनाया है।
इस संविधान पीठ में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के साथ जस्टिस बीआर गवई, विक्रम नाथ, बेला एम त्रिवेदी, पंकज मिथल, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र शर्मा शामिल हैं। सीजेआई ने कहा कि छह जजों की राय एकमत थी, जबकि जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने असहमति जताई।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में ऐतिहासिक साक्ष्यों का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि अनुसूचित जातियां एक सजातीय वर्ग नहीं हैं और उप-वर्गीकरण संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत निहित समानता के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करता है। साथ ही, उप-वर्गीकरण संविधान के अनुच्छेद 341(2) का भी उल्लंघन नहीं करता है। अनुच्छेद 15 और 16 में ऐसा कुछ भी नहीं है जो राज्य को किसी जाति को उप-वर्गीकृत करने से रोकता हो।
कोर्ट ने कहा कि अनुसूचित जातियां एक समरूप समूह नहीं हैं और सरकार पीड़ित लोगों को 15% आरक्षण में अधिक महत्व देने के लिए उन्हें उप-वर्गीकृत कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने 2004 के चिन्नैया मामले में दिए गए फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें अनुसूचित जाति के उप-वर्गीकरण के खिलाफ निर्णय दिया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुसूचित जातियों के उप-वर्गीकरण उनके भेदभाव की डिग्री के आधार पर किया जाना चाहिए और इसे राज्यों द्वारा सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में उनके प्रतिनिधित्व के अनुभवजन्य डेटा के संग्रह के माध्यम से किया जा सकता है। यह सरकारों की इच्छा पर आधारित नहीं हो सकता।
दरअसल, पंजाब सरकार ने अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित सीटों में से 50% ‘वाल्मिकी’ एवं ‘मजहबी सिख’ को देने का प्रावधान किया था, जिसे 2004 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने रोक दिया था। इस फैसले के खिलाफ पंजाब सरकार और अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। 2020 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा था कि वंचितों तक लाभ पहुंचाने के लिए यह जरूरी है। इसके बाद यह मामला सात जजों की पीठ को भेजा गया था।