महिला सांसदों ने कहा, ‘समाज की सोच महिलाओं को लेकर अभी नहीं बदली’
नई दिल्ली। लोकसभा में महिला सांसदों ने कहा है कि महिलाएं आज हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चल रही हैं लेकिन उनको अब भी कमजोर समझा जाता है और समाज की सोच में महिलाओं को लेकर अभी बदलाव नहीं आया है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर लोकसभा में महिला सशक्तीकरण पर ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पर नियम 193 के तहत चर्चा की शुरुआत करते हुए वाईएसआर कांग्रेस की डॉ बीवी सत्यावती ने कहा कि महिलाओं ने हर क्षेत्र में प्रगति की है और उन्हें इस बात का गौरव है कि वह उस 17वीं लोकसभा की सदस्य हैं जिसमें सबसे ज्यादा 78 महिला सदस्य चुनकर आयी हैं। उन्होंने कहा कि वेदों में महिलाओं को ब्रह्म कहा गया है।
उन्होंने कहा कि वह खुद स्त्री रोग विशेषज्ञ डाक्टर है और समाज में राजनीतिक तथा अपने पेशागत क्षेत्र में महिलाओं के हित के लिए काम कर रही हैं। उनका कहना था कि आज के दिन प्रतिज्ञा की जानी चाहिए कि बच्चियों को आगे आने का अवसर दिया जाना चाहिए।
डॉ सत्यवती ने कहा कि केंद्र सरकार ने महिला सशक्तीकरण के लिए कई कदम उठाए हैं और 22 करोड जनधन खाते खोलकर महिलाओं को सशक्त बनाया है। बेटी पढाओ और बेटी बचाओ अभियान जैसे कार्यक्रम शुरू किए हैं। असंगठित क्षेत्र में महिलाओं की महत्वपूर्ण भमिका है और आंध्र प्रदेश सरकार महिला सशक्तीकरण के लिए लगातार काम किया जा रहा है। बच्चियों को कुपोषण से बचाने के लिए कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं इसलिए केंद्र सरकार को आंध्र को वित्तीय सहायता उपलब्ध करानी चाहिए।
भारतीय जनता पार्टी की संघमित्रा मार्य ने कहा कि साल में एक दिन महिलाओं को महिला दिवस के रूप में मिलता है और विपक्ष के सदस्य हंगामा कर महिलाओं के इस हक पर भी हमला कर रहे हैं। उनका कहना था कि महिलाएं हर क्षेत्र में बखूबी अपनी भूमिका निभा रही हैं और अपने कर्तव्यों का पालन कर रही हैं। महिलाओं का समाज में बराबरी का अधिकार है लेकिन उन्हें शुरू से ही शारीरिक और बौद्धिक रूप से कमजोर समझा जाता रहा है।
उन्होंने महिलाओं को कमजोर समझने की अवधारणा को गलत बताया और कहा कि यदि महिलाएं कमजोर हैं तो शक्ति के लिए मां दुर्गा, मां काली जैसी देवियों का आह्वान क्यों किया जाता है। उनका कहना था कि समाज की अवधारणा बदलनी चाहिए और महिलाओं की शक्ति की पहचान होनी चाहिए। समाज में महिलाओं को बढ़ावा मिलना चाहिए और समाज को उनकी शक्ति को स्वीकार करना चाहिए। (वार्ता)