ऑटोमोड' में है इंडियन इकोनॉमी : रवि तोदी
कोलकाता, 4 अगस्त (निप्र)। भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत स्थिति में है। सही रास्ते पर चल रही है। यहां का बाजार विशाल है और बहुत बड़ी आबादी है। अर्थव्यवस्था के लिए फिलहाल अनुकूल परिस्थितियां बनी हुई हैं। इंडियन इकोनॉमी 'ऑटोमोड' पर चल रही है। 'आटोमोड' कहने का मतलब यह है कि लगभग 1.4 बिलियन यहां की आबादी है। माल की बहुत बड़ी खपत है। किसी भी देश-विदेश के व्यापारी और उद्यमी को अपने उत्पादों-सामानों को बेचने के लिए यहां आना ही पड़ेगा और दूसरा कोई विकल्प नहीं है। दुनिया के किसी दूसरे देश में ऐसी स्थितियां नहीं हैं। चूंकि हर तरह की परिस्थितियां अनुकूल हैं। इसलिए अर्थव्यवस्था खुद अपना रास्ता तय कर रही है। इंडियन इकोनॉमी के लिए रास्ते खोजने की जरूरत नहीं है। दुनिया के किसी भी कोने में जाइए, व्यापार की चर्चा करिए या अर्थव्यवस्था की चर्चा करिए तो भारत का नाम सबसे पहले लिया जाता है। हर तरफ हमारा ही बोलबाला है। यह समय देश के लिए सवर्णिम काल कहा जा सकता है। अगर आने वाले निकट भविष्य में 'छेड़छाड़' नहीं हुई तो सबकुछ ठीक-ठाक चलता रहेगा। देश भी आगे बढ़ता रहेगा और देश की अर्थव्यवस्था तथा उद्योग-धंधे भी तेज रफ्तार से आगे बढ़ते चले जाएंगे। 'छेड़छाड़' का मतलब यह है कि अगर सरकार ने नीतियों में कोई बहुत बड़ा बदलाव कर दिया। उद्योग- व्यापार क्षेत्र के लिए नियम- कानूनों में परिवर्तन कर दिया तो पटरी पर चल रही गाडी पटरी से उतर सकती है। हमारे यहां पढ़े- लिखे, पेशेवर तथा दक्ष युवाओं की बहुत बड़ी फौज है। हमारे यहां के लोगों की दुनिया के देशों में कदर हो रही है। हमारे लोगों की मांग बढ़ी है। दुनिया की बड़ी बड़ी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में भारतीयों का दबदबा बढ़ रहा है। भारतीय या भारतीय मूल के लोग अपनी प्रतिभा और कुशल नेतृत्व के बल पर नाम कर रहे हैं। हमारा देश 'स्किल्ड लेबर कैपिटल ऑफ द वर्ल्ड' बन गया है। यह कथन है श्राची ग्रुप के निदेशक श्री रवि तोदी का, जो 'दैनिक विश्वमित्र' के साथ एक विशेष बातचीत में देश की अर्थव्यवस्था को लेकर चर्चा कर रहे थे।
'यह समस्या जल्द नहीं खत्म होगी
श्री तोदी कहते हैं कि यह सच है कि है कि हमारे देश में बेरोजगारी और महंगाई एक बहुत बड़ी समस्या बनी हुई है। इस समस्या की वजह से देश की इकोनॉमी में असंतुलन की स्थिति भी महसूस की जा रही है। यह भी कहा जा रहा है, माना जा रहा है कि आर्थिक असमानता का माहौल गहराता जा रहा है, लेकिन यह भी सच है कि यह समस्या जल्द खत्म नहीं होगी। इस समस्या को खत्म करने के लिए लांग टम पॉलिसी पर काम करना होगा और लम्बे समय तक इंतजार करना होगा। दरअसल एक ओम जहां हमारे देश में हाई लेबल पर स्क्ल्डि वर्कर की उपलब्धता है वहीं दूसरी तरफ नार्मल लेबर, तथा मिडियम और सेमी स्किल्ड लेबर का अभाव है। लोग काम करना नहीं चाहते। मेहनत करने से पीछे हट रहे हैं। एक बार लेबस गांव चला गया तो फिर वह दुबारा शहरों की ओर लौटने के पहले चार बार सोचता है। इसके पीछे कई वजहें हैं। सरकार की ओ से सामाजिक सुरक्षा के नाम प चलाई जा रही कई ऐसी योजना हैं, जिसके जरिए श्रमिक वर्ग की जरूरतें काफी हद तक पूरी हो ज रही हैं। कई अन्य तरीकों से सरकारी मदद मिल जा रही है इसलिए मेहनत कर कमाने की ज सोच मूलतः रहा करती थीं, उसम कमी आई है। इस सबकी बजा से लेबर कास्ट बढ़ गया है लेकिन उत्पादकता घटती जा रही है। अर्थात् लेबर महंगा तो हो गया है, लेकिन पहले की तरह वा मेहनत नहीं करना चाह रहा है।
नई पीढ़ी की सोच और प्रवृत्ति
श्री तोदी कहते हैं कि नई पीढ़ के सोचने, काम करने का औ जिन्दगी जीने का तरीका बिल्कुल अलग है। हर किसी को अपने तरीके से जीते हुए देखा जा सकत है। नई पीढ़ी की सोच और पुरानी पीढ़ी की सोच में बुनियादी फर्क यह है कि युवा वर्ग आज खच्च करना चाहता है, बचत के बा में कल सोचता है, लेकिन पुरानी पीढ़ी के लोग खर्च करने के पहल बचत करने को प्राथमिकता देते थे। आज के लोगों की सोच कि कमाओ, खर्च करो औ इन्ज्वाय करो। सेविंग करने क कंसेप्ट सीमित रह गया है। मेर मानना है कि खर्च करना इसलिए जरूरी है ताकि बाजार में पैस घूमता रहे, नकदी का प्रवाह बन रहे, लेकिन खर्च करने और बचल करने के बीच संतुलन भी बहुत जरूरी है।