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Dainik Vishwamitra

बुधवार ४ दिसंबर २०२४

‘आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैया’ --अर्थव्यवस्था से गायब है अनुशासन---




कोलकाता, 12 अगस्त (निप्र)। देश की अर्थव्यवस्था का क्या हाल बताएं? सच्चाई तो यह है कि अर्थव्यवस्था से अनुशासन पूरी तरह से नदारद है। अनुशासन नाम की चीज नहीं दिख रही है। वित्तीय घाटा बढ़ता जा रहा है, यह कब काबू में आएगा, क्या कभी हमारे देश में ऐसा भी होगा कि वित्तीय घाटा बिल्कुल नहीं रह जाएगा? शायद मौजूदा व्यवस्था में कभी भी ऐसा सम्भव नहीं हो पाएगा, क्योंकि सरकार की सोच ही नहीं है। सरकारें इस बारे में कभी सोचती तक नहीं हैं कि हमें वित्तीय घाटा पूरी तरह से खत्म करना है। जीएसटी का कलेक्शन बढ़ता जा रहा है। लगातार बढ़ रहा है। ‘विन्ड फॉल कलेक्शन’ हो रहा है। इसके बावजूद वित्तीय घाटे पर, राजस्व घाटे पर नियंत्रण क्यों नहीं हो पा रहा है? व्यवस्था में कहां खामी है? इस बारे में सरकार क्यों नहीं सोचती? अनुशासन नाम की चीज नहीं है। जिसकी जो मर्जी है, वह वही कर रहा है। केन्द्र सरकार हो या देश की राज्य सरकारें हों, मुफ्त में सबकुछ देने की होड़ में शामिल हैं, क्योंकि ऐसा करने से उन्हें वोट मिलेंगे, सत्ता बरकरार रहेगी। राजा बने रहने के लिए जो मन में आए, वहीं करते रहेंगे? चौधरी देवीलाल के शासन काल में 2 रुपये किलो में जनता को चावल देने की शुरुआत हुई थी, आज तो सबकुछ मुफ्त में दिया जा रहा है। कर्ज लो, फेल होते रहो और मुफ्त में अनाज बांटते रहो। यही तो हो रहा है। दरअसल हमारी सरकारें अपने आपको ‘पास’ करने की सोचती ही नहीं, फेल होते रहने की कोई फिक्र ही नहीं है। यह कथन है वरिष्ठ चिंतक एवं जीईई लिमिटेड के चेयरमैन श्री शंकर लाल अग्रवाल का, जो ‘दैनिक विश्‍वमित्र’ के साथ एक विशेष बातचीत में अपने विचार व्यक्‍त कर रहे थे।
श्री अग्रवाल कहते हैं कि कितना फ्री में दिया जा रहा है, कोई हिसाब किताब नहीं। ‘आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैया’। इसी नीति पर सरकारें बढ़ रही हैं। कमाई 100 रुपये की है और मुफ्त में 1000 रुपये बांटे जा रहे हैं। श्री अग्रवाल कहते हैं कि यह मनमानी नहीं तो अौंर क्या है? अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए जनता का पैसा पानी की तरह खर्च किया जा रहा है। नियम-कानून बनना चाहिए। केन्द्र सरकार के लिए भी और राज्य सरकारों के लिए भी। मुफ्त में सुविधा देकर, चीजें बांट कर और योजनाएं चलाकर जो खर्च किया जा रहा है, उसका अधिकार किसने दिया है? इसकी जवाबदेही तय करने के लिए, मुफ्त के कामों में सरकारी खजाने से खर्च करने के लिए कोई नियम बनना चाहिए, कानून बनना चाहिए।
बढ़ती जा रही है महंगाई
देश में महंगाई का बढ़ने का सिलसिला जारी है। तकरीबन 6 प्रतिशत महंगाई की दर चल रही है। महंगाई की मार निम्न वर्ग, निम्न-मध्यम वर्ग और मध्यम वर्ग पर सबसे ज्यादा पड़ रही है। महंगाई पर काबू पाने के लिए कोई ठोस नीति, कोई ठोस उपाय नहीं हो रहा है। ऐसा क्यों? इलाज का खर्च बेहिसाब बढ़ गया है। एक तरफ आधुनिक चिकित्सा की सुविधा वाले बड़े-बड़े अस्पताल खुल रहे हैं तो दूसरी तरफ चिकित्सा का खर्च तेज रफ्तार से बढ़ रहा है। एक समय हमारे इसी देश में अस्पताल और विद्यालय दान-धर्म के दृष्टिकोण से बनते थे, चलते थे। आज वही अस्पताल, वही विद्यालय कमाई कर रहे हैं और टैक्स भी दे रहे हैं। पूरा परिदृश्य ही बदल गया है! क्या सबको शिक्षा और सबको स्वास्थ्य की सुविधा देने की जिम्मेदारी सरकार की नहीं बनती है?
कब तक निचोड़े जाएंगे टैक्स पेयर
खर्च करने और ‘खैरात’ बांटने का पूरा बोझ टैक्स पेयर पर ही क्यों डाला जा रहा है। आखिर कब तक टैक्स पेयर निचोड़े जाते रहेंगे। कोई मुकम्मल व्यवस्था, नियम-कानून और अनुशासन क्यों नहीं बन रहा? मध्यम वर्ग बोझ तले दबता जा रहा है, किसी को कोई परवाह नहीं, कोई चिन्ता नहीं है। टैक्स लगाना ही है तो ऐसे लोगों पर ज्यादा टैक्स लागू क्यों नहीं होता, जिनकी कमाई सालाना 1000 करोड़ रुपये से अधिक है। कमाई करने वाले वर्ग पर टैक्स की दरें बढ़ाई जाएं तो बात भी समझ में आती है। सबको एक ही तराजू में क्यों तौला जा रहा है?
किसी भी तरह से
‘राजा’ बने रहना है
देश के राजनीतिक दलों का सबसे पहली प्राथमिकता जो दिखती चली आ रही है, वह यह है कि किसी भी तरह से ‘राजा’ बने रहना है। राजा बने रहने के लिए जो कुछ भी करना पड़ता है, किया जा रहा है। तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। लोकलुभावन योजनाएं लाई जा रही हैं। जनता को खुश रहना है, क्योंकि वोट लेना है। सारा सियासी खेल वोट के लिए हो रहा है। हमारा वोट बैंक कैसे बनेगा, कैसे पक्‍का रहेगा, सबसे पहले इस पर सोचना है, इसको प्राथमिकता देनी है। मंत्री भले ही हाई स्कूल पास न हो, लेकिन उसका सेक्रेटरी आईएएस होना चाहिए। यह कैसी व्यवस्था है? कब तक चलेगा यह सब? ऐसे रास्ते पर चलने से देश को क्या नुकसान हो रहा है, देश के खजाने पर क्या असर पड़ रहा है, इससे किसी का मतलब नहीं है। वोट मिल गए, चुनाव जीत गए, सत्ता में आ गए, बस यही तो चाहिए!
जीईई लिमिटेड
जीईई लिमिटेड वेल्डिंग उद्योग में अग्रणी कंपनियों में से एक हैं। श्री शंकर लाल अग्रवाल इस कम्पनी के चेयरमैन हैं। अपने अभिनव उत्पादों और उल्लेखनीय पोर्टफोलियो के साथ, यह कम्पनी वेल्डिंग उद्योग में अग्रणी के रूप में उभरी है। सकारात्मक दृष्टिकोण, दृढ़ दृष्टिकोण और अभिनव समाधान कम्पनी को विश्व स्तरीय वेल्डिंग समाधान सभी के लिए सुलभ बनाने में मदद  करता है।


 


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